
हाइलाइट्स
- भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन का दावा सिरे से खारिज किया.
- रिजिजू और ललन सिंह धर्मशाला में जन्मदिन समारोह में होंगे शामिल.
- पंचेन लामा की ‘गायबी’ घटना से दोहराया गया तिब्बती आस्था का संकट
Dalai Lama News: धर्मशाला में इन दिनों एक खास उल्लास है लेकिन एक गहरी चिंता भी. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस के जश्न में जहां पूरी दुनिया से अनुयायी जुट रहे हैं. वहीं भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री किरेन रिजिजू और ललन सिंह भी इस समारोह में भाग लेने वाले हैं. इस बीच रिजिजू दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर उन्होंने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “दलाई लामा के उत्तराधिकारी का निर्णय केवल उन्हीं का या उनके संस्थान गदेन फोद्रांग का अधिकार क्षेत्र है. इसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं.” रिजिजू आज दलाई लामा के जन्मदिन पर होने वाले जश्न में शामिल होने के लिए जाएंगे.
यह बयान ऐसे समय आया है जब चीन ने एक बार फिर दावा किया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी बीजिंग की मंजूरी से ही तय होना चाहिए. लेकिन रिजिजू के मुताबिक, “यह राजनीति नहीं बल्कि आस्था का सवाल है.”
ललन सिंह की मौजूदगी को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा है. बिहार के नालंदा से उनका जुड़ाव जो प्राचीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र रहा है इस धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को और प्रासंगिक बना देता है. यह सरकार का एक स्पष्ट संकेत है कि भारत तिब्बती आस्था और उनकी सांस्कृतिक आजादी के साथ खड़ा है.चीन का दावा और भारत की प्रतिक्रिया
चीन की ओर से विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दोहराया कि तिब्बती बौद्ध परंपरा “चीनी विशेषताओं वाली एक धर्म-प्रणाली” है. और उत्तराधिकार की प्रक्रिया ‘गोल्डन अर्न’ जैसे पारंपरिक तरीकों के अनुसार चीनी सरकार की अनुमति से ही होनी चाहिए. लेकिन दलाई लामा के कार्यालय से हाल में आया बयान साफ करता है कि केवल गदेन फोद्रांग ट्रस्ट को ही उनके उत्तराधिकारी को पहचानने का वैध अधिकार है.
चीन की ओर से विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दोहराया कि तिब्बती बौद्ध परंपरा “चीनी विशेषताओं वाली एक धर्म-प्रणाली” है. और उत्तराधिकार की प्रक्रिया ‘गोल्डन अर्न’ जैसे पारंपरिक तरीकों के अनुसार चीनी सरकार की अनुमति से ही होनी चाहिए. लेकिन दलाई लामा के कार्यालय से हाल में आया बयान साफ करता है कि केवल गदेन फोद्रांग ट्रस्ट को ही उनके उत्तराधिकारी को पहचानने का वैध अधिकार है.
क्यों यह मामला इतना संवेदनशील?
तिब्बत पर चीन के नियंत्रण और दलाई लामा की निर्वासन यात्रा को 60 साल से अधिक हो गए हैं. इस दौरान उन्होंने अहिंसात्मक संघर्ष के जरिए वैश्विक स्तर पर तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के लिए आवाज उठाई है. लेकिन इस मुद्दे की सबसे चिंताजनक बात है पंचेन लामा का मामला.1995 में दलाई लामा ने जब एक छह वर्षीय बच्चे को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी तो कुछ ही दिनों बाद वह बच्चा गायब हो गया. माना जाता है कि उसे चीन की सुरक्षा एजेंसियों ने हिरासत में ले लिया और फिर कभी दुनिया की नजरों में नहीं आया. इसके बाद चीन ने अपना ‘पंचेन लामा’ नियुक्त किया जिसे तिब्बती समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने कभी स्वीकार नहीं किया.
तिब्बत पर चीन के नियंत्रण और दलाई लामा की निर्वासन यात्रा को 60 साल से अधिक हो गए हैं. इस दौरान उन्होंने अहिंसात्मक संघर्ष के जरिए वैश्विक स्तर पर तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के लिए आवाज उठाई है. लेकिन इस मुद्दे की सबसे चिंताजनक बात है पंचेन लामा का मामला.1995 में दलाई लामा ने जब एक छह वर्षीय बच्चे को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी तो कुछ ही दिनों बाद वह बच्चा गायब हो गया. माना जाता है कि उसे चीन की सुरक्षा एजेंसियों ने हिरासत में ले लिया और फिर कभी दुनिया की नजरों में नहीं आया. इसके बाद चीन ने अपना ‘पंचेन लामा’ नियुक्त किया जिसे तिब्बती समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने कभी स्वीकार नहीं किया.
क्या दलाई लामा की परंपरा बची रह पाएगी?
पारंपरिक रूप से दलाई लामा और पंचेन लामा एक-दूसरे के भूमिका को पहचानते हैं. यदि चीन इस परंपरा में हस्तक्षेप करता है और राजनीतिक रूप से अपने अनुसार उत्तराधिकारी थोपता है तो यह केवल धर्म की हत्या नहीं होगी बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत का राजनीतिक अपहरण भी होगा. ऐसे में भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों की मौजूदगी एक बड़ा संदेश देती है. वह है आस्था, परंपरा और आत्मनिर्णय का समर्थन.